Ishwar chandra vidyasagar Biography in hindi
Ishwar chandra vidyasagar Biography:
एक दिन एक छोटे बच्चे ने स्कूल से आकर अपनी मां को कहा..
“मां.. मेरी स्कूल के कुछ बच्चें बहोत बुरे है..”
मां ने पूछा.. “अरे.. ऐसा क्या हो गया..?”
बच्चे ने कहा..”हमारे शिक्षक हररोज कहते है की प्रार्थना के वक्त अपनी आंखे बंध रखो। लेकिन फिर भी रोज 3-4 बच्चें आंखे खुली ही रखते हैं।”
मां ने एक मीठी मुस्कान के साथ पूछा, “ये बात भला तुमको कैसे पता? कहीं तुम भी अपनी आंखे खुली तो नहीं रखते ना!”
बच्चे को तुरंत अपनी गलती का अहसास हुआ और उसने अपने कान पकड़े।
मां ने कहा,”बेटा दूसरों की गलती सुधारने से पहले खुद को सुधारना चाहिए..”
अपनी मां की इस बात को जीवन मंत्र मान यह बच्चा बड़ा हो कर भारत वर्ष का महान विचारक बना जिसे हम ईश्वरचंद्र विद्यासागर के नाम से जानते है।
शैक्षणिक क्षेत्र में योगदान के कारण पूरे देश से लोग उन्हें मिलने आते थे। एक बार ऐसे ही एक सज्जन उन्हें मिलने कलकत्ता पहोंचे। बढ़िया सा सूट पहन कर, हाथ में सूटकेस लिए वह स्टेशन पर उतरे। उन्होंने नजर घुमाई। वहां उन्हें सामान्य कपड़ों में एक आदमी दिखा। वेश भूषा से वह कुली लगता था। इस सज्जन ने उसे बुलाया और कहा, “मुझे ईश्वर चंद्र विद्यासागर जी के घर ले चलो।” और अपना सामान उसे थमा दिया।
यह व्यक्ति सामान लेकर इस सज्जन को राह दिखाता निकल पड़ा। थोड़ा चलते ही ईश्वर चंद्र जी का घर आया। कुली ने सामान उतारा और कहा “महोदय, आप जिस ईश्वर चंद्र से मिलने आए हैं वह में ही हूं। बताइए क्या काम है।” आए हुए सज्जन इस बात से अचंभित हो गए।
इतने बड़े स्तर का व्यक्ति और ऐसी सादगी..!
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर जीवन परिचय:
बचपन
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले के वीरसिंह गाँव में हुआ था। वे एक काफी गरीब से थे। उनके पिता का नाम ठाकुरदास बन्द्योपाध्याय तथा उनकी माता का नाम भगवती देवी था। उनका वास्तविक नाम ईश्वर चन्द्र बन्द्योपाध्याय था। उनकी पत्नी का नाम दीनामणि देवी था। उनके बेटे का नाम नारायण चंद्र बन्द्योपाध्याय है।
शिक्षा
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर ने प्रारम्भिक शिक्षा गाँव के स्कूल से ही प्राप्त करने के बाद छ: वर्ष की आयु में ही ईश्वर चन्द्र पिता के साथ कलकत्ता (वर्तमान कोलकाता) आ गये थे। वह कोई भी चीज़ बहुत जल्दी सीख जाते थे। उत्कृष्ट शैक्षिक प्रदर्शन के कारण उन्हें विभिन्न संस्थानों द्वारा कई छात्रवृत्तियाँ प्रदान की गई थीं। वे उच्चकोटि के विद्वान् थे। संस्कृत भाषा और दर्शन में विशिष्ट ज्ञान के कारण विद्यार्थी जीवन में ही ‘विद्यासागर’ की उपाधि मिली।
करियर
1839 में उन्होंने कानून की पढ़ाई पूरी की और फिर साल 1841 में उन्होंने फोर्ट विलियम कॉलेज में पढ़ाना शुरू कर दिया था। उस वक्त उनकी उम्र मात्र इक्कीस साल के ही थी। फोर्ट विलियम कॉलेज में पांच साल तक अपनी सेवा देने के बाद उन्होंने संस्कृत कॉलेज में सहायक सचिव के तौर पर सेवाएं दीं। यहां से उन्होंने पहले साल से ही शिक्षा पद्धति को सुधारने के लिए कोशिशें शुरू कर दी और प्रशासन को अपनी सिफारिशें सौंपी। इस वजह से तत्कालीन कॉलेज सचिव रसोमय दत्ता और उनके बीच तकरार भी पैदा हो गई। जिसके कारण उन्हें कॉलेज छोड़ना पड़ा। लेकिन, उन्होंने 1849 में एक बार वापसी की और साहित्य के प्रोफेसर के तौर पर संस्कृत कॉलेज से जुडे़। फिर जब उन्हें संस्कृत कालेज का प्रधानाचार्य बनाया गया तो उन्होंने कॉलेज के दरवाजे सभी जाति के बच्चों के लिए खोल दिए।
समाज सुधारक के रूप में योगदान
ईश्वरचंद्र विद्यासागर ने स्थानीय भाषा और लड़कियों की शिक्षा के लिए स्कूलों की एक श्रृंखला के साथ कोलकाता में मेट्रोपॉलिटन कॉलेज की स्थापना की। इससे भी कई ज्यादा उन्होंने इन स्कूलों को चलाने के पूरे खर्च की जिम्मेदारी अपने कंधों पर ली। स्कूलों के खर्च के लिए वह विशेष रूप से स्कूली बच्चों के लिए बंगाली में लिखी गई किताबों की बिक्री से फंड जुटाते थे। उन्होंने विधवाओं की शादी के हख के लिए खूब आवाज उठाई और उसी का नतीजा था कि विधवा पुनर्विवाह कानून-1856 पारित हुआ।
उन्होंने खुद एक विधवा से अपने बेटे की शादी करवाई थी। उन्होंने बहुपत्नी प्रथा और बाल विवाह के खिलाफ भी आवाज उठाई थी। उनके इन्हीं प्रयासों ने उन्हें समाज सुधारक के तौर पर पहचान दी। उन्होंने साल 1848 में वैताल पंचविंशति नामक बंगला भाषा की प्रथम गद्य रचना का भी प्रकाशन किया था। नैतिक मूल्यों के संरक्षक और शिक्षाविद विद्यासागर का मानना था कि अंग्रेजी और संस्कृत भाषा के ज्ञान का समन्वय करके भारतीय और पाश्चात्य परंपराओं के श्रेष्ठ को हासिल किया जा सकता है।
पुस्तकें
Marriage of Hindu widows – 1856
Unpublished Letters of Vidyasagar
मृत्यु
ईश्वर चन्द्र विद्यासागर की मृत्यु 70 साल की आयु में 29 जुलाई, 1891 को कोलकाता में हुआ था।